ख़ार को तो ज़बान-ए-गुल बख़्शीगुल को लेकिन ज़बान-ए-ख़ार ही दी
मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभीदेखनी है आब-जू-ए-ज़ीस्त की रफ़्तार अभी
हबीब तनवीर के शेर