फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों, अफ़्साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनायी हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपायी हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूँढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग-बजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त, बाक़ी सब कुछ माया हो
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने ‘हू’
बस्ती-बस्ती सहरा-सहरा लाखों करें दिवाने ‘हू’
जोगी भी जो नगर-नगर में मारे-मारे फिरते हैं
कासा लिए, भभूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
शाइर भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इनमें सच्चे मोती भी हैं, इनमें कंकर-पत्थर भी
इनमें उथले पानी भी हैं, इनमें गहरे सागर भी
गोरी देख के आगे बढ़ना सब का झूठा-सच्चा ‘हू’
डूबने वाली डूब गई वो, घड़ा था जिसका कच्चा ‘हू’