loader image

पंचभूत – काका हाथरसी की कविता

भाँड़, भतीजा, भानजा, भौजाई, भूपाल
पंचभूत की छूत से, बच व्यापार सम्हाल
बच व्यापार सम्हाल, बड़े नाज़ुक ये नाते
इनको दिया उधार, समझ ले बट्टे खाते
‘काका ‘ परम प्रबल है इनकी पाचन शक्ती
जब माँगोगे, तभी झाड़ने लगें दुलत्ती

459

Add Comment

By: Kaka Hathrasi

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!