Categories: कविता

कीड़े – कमला दास की कविता

Published by
Kamala Das (Madhavikutty)

साँझ ढले, नदी के तट पर
कृष्ण ने आख़िरी बार उसे प्रेम किया
और चले गए फिर उसे छोड़कर

उस रात अपने पति की बाँहों में
ऐसी निष्चेष्ट पड़ी थी राधा
कि जब उसने पूछा
‘क्या परेशानी है ?
क्या बुरा लग रहा है तुम्हें मेरा चूमना, मेरा प्रेम’

तो उसने कहा
‘नहीं…बिल्कुल नहीं’

लेकिन सोचा —
‘क्या फ़र्क पड़ता है किसी लाश को
किसी कीड़े के काटने से !’

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Kamala Das (Madhavikutty)