loader image

यक़ीनों की जल्दबाज़ी से

एक बार ख़बर उड़ी
कि कविता अब कविता नहीं रही
और यूँ फैली
कि कविता अब नहीं रही!

यक़ीन करनेवालों ने यक़ीन कर लिया
कि कविता मर गई,
लेकिन शक़ करने वालों ने शक़ किया
कि ऐसा हो ही नहीं सकता
और इस तरह बच गई कविता की जान

ऐसा पहली बार नहीं हुआ
कि यक़ीनों की जल्दबाज़ी से
महज़ एक शक़ ने बचा लिया हो
किसी बेगुनाह को।

954

Add Comment

By: Kunwar Narayan

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!