दिल हो गया है ग़म से तिरे दाग़दार ख़ूब
फूला है क्या ही जोश से ये लाला-ज़ार ख़ूब
संग-ए-रह हूँ एक ठोकर के लिए
तिस पे वो दामन सँभाल आता है आज
बसंत आई है मौज-ए-रंग-ए-गुल है जोश-ए-सहबा है
ख़ुदा के फ़ज़्ल से ऐश-ओ-तरब की अब कमी क्या है
दरेग़ चश्म-ए-करम से न रख कि ऐ ज़ालिम
करे है दिल को मिरे तेरी यक नज़र महज़ूज़
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