दूर बहुत ही दूर यहाँ से
और इस से भी दूर
नद्दी इक निकली है जहाँ से
और इस से भी दूर
दलदल है गहरी सी जहाँ पर
दलदल से भी दूर
जंगल में है बुढ़िया का घर
जंगल से भी दूर
याद है उस को एक कहानी
है उस में इक हूर
ख़ुद ये है इक मुल्क की रानी
मुल्क है निन्दिया पूर
इस जंगल को देखूँगा मैं
जंगल से भी दूर
हूर के मुल्क में जाऊँगा मैं
या’नी निन्दिया पूर