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समुद्र वह है – केदारनाथ अग्रवाल की कविता

समुद्र वह है
जिसका धैर्य छूट गया है
दिककाल में रहे-रहे!

समुद्र वह है
जिसका मौन टूट गया है,
चोट पर चोट सहे-सहे!

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By: Kedarnath Agarwal

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