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अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ

श्याम वरन और दाँत अनेक,
लचकत जैसे नारी,
दोनों हाथ से ‘खुसरो’ खींचे
और कहे तू आरी।

– आरी

इधर को आवे उधर को जावे,
हर-हर फेर काट वह खावें।
ठहर रहे जिस दम वह नारी,
खुसरो कहे बरे को आरी।

– आरी

एक नार वह दाँत दंतीली
पतली दुबली छैल छबीली।
जब वा तिरियाहिं लागे भूख
सूखे हरे चबावे रूख।
जो बताय वाही बलिहारी,
खुसरो कहे बरे को आरी।

– आरी

बाला था जब सब को भाया,
बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया आसका नाँव
अर्थ करो नहीं छोड़ों गाँव!

– दिया

सावन भादों बहुत चलत हैं, माघ पूस में थोरी,
अमीर खुसरो यों कहे तू बूझ पहेली मोरी।

– मोरी (नाली)

चार महीने बहुत चलत है, और महीने थोरी
अमीर खुसरो यो कहे तू बूझ पहेली मोरी।

– मोरी (नाली)

अंदर है और बाहर बहे
जो देखे सो मोरी कहे।

– मोरी (नाली)

फारसी बोली आईना,
तुर्की ढूंढी पाई ना।
हिंदी बोली आरसी आए,
खुसरो कहे कोई न बताए।

– आरसी (दर्पण)

पौन चलत वह देह बढ़ावै,
जल पीवत वह जीव गंवावै।
है यह प्यार सुन्दर नार
नार नहीं, पर है वह नार!

– नार (आग)

एक नार करतार बनाई,
ना वह क्वाँरी ना वह ब्याही।
सूहा रंग ही वाको रहे
भावी, भाबी हर कोई कहे।

– भावी (वीर बहूटी)

एक पेड़ रेती में होवे
बिन पानी ही हरा रहे।
पानी दिए से वह जल जाय
आंक लगे अन्धा हो जाए।

– आक

एक बार जब बन कर आवे
मालिक अपने ऊपर बुलावे।
है वह नारी सब के गौं की
खुसरो नाम लिए तो चौकी

– चौकी

नारी से तू नर भई और श्याम वरन भई सोय
गली-गली कूकत फिरे कोइलो, कोइलो लोय।

– कोयल

एक मंदिर के सहसर दर
हर दर में तिरिया का घर
बीच-बीच बाके अमरत ताल
बूझ है इनकी बड़ी महाल

– महाल (शहद का छत्ता)

एक नार तरूवर से उतरी माँ सो जनम न पायो।
बाप का नाम जो वासे पूछयो, आधा नाम बतायो।
आधा नाम बतायों खुसरो कौन देस की बोली।
वाका नाम जो पूछा मैंने, अपना नाँव न बोली!

– निबोली

जल जल चलता बसता गाँव,
बस्ती में नावा का ढाँव!
खुसरो ने दिया वाका नाँव,
बूझो अर्थ नहीं छोड़ो गाँव ।

– नाव

नर नारी की जोड़ी डीठी
जब बोले तब लागें मीठी।
इक-न्हाय इक तापन हारा।
कर खुसरो कप कूच नकारा।

– नक्कारा

घूम-घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रही खड़ी।
आइ हाथ है, उस नारी के सूरत उसकी लगे परी।
सब कोई उसकी चहा करे हैं, मुसलमान, हिन्दू, छत्री।
खुसरो ने यह कही पहेली, दिल में अपने सोच ज़री।

– छतरी

पान फूल वाके सर माँ हैं।
लड़े-कटें जब मद पर आहैं।
चिट्टे काले वाके बाल।
बूझ पहेली मेरे लाल।

– लाल चिड़िया

एक नार चरन वाके चार।
स्याम बरन, सूरत बदकार।
बूझो तो मुश्क है न बूझो तो गुँवार।

– मुश्क (कस्तूरी)

हाड़ की देही उज्जवल रंग।
लिपटा रहे नारि के संग।
चोरी की, ना खून किया।
वाका सिर क्यों काट लिया।

– नाखून

बीसों का सिर काट लिया।
ना मारा ना खून किया।

– नाखून

काजल की कजलौटी ऊधो,
पेड़न का सिंगार।
हरी डाल पे मैना बैठी ,
है कोई बूझन हार।

– जामुन

एक राजा ने महल बनाया,
एक थम्ब पर वाने बंगला छाया।
भोर भई जब बाजी बम,
नीचे बंगला ऊपर थम्ब।

– मथनी

आदि कटे तो सबको पाले,
मध्य कटे तो सबको घाले
अंत कटे तो सबको मीठा,
खुसरो वाको आँखों दीखा।

– काजल

एक नार चतुर कहलावे,
मूरख को ना पास बुलावे।
चतुर मरद जो हाथ लगावे,
खोल सतर वह आप दिखावे।

– पुस्तक

कीली पर खेती करै,
औ पेड़ में दे दे आग।
रास ढोय घर में रखै,
रह जाए है राख।

– कुम्हार

गाँठ गठीला, रंग-रंगीला,
एक पुरुख हम ने देखा।
मरद इस्तरी उसको रक्खे,
उसका क्या कहूँ लेखा।

– मठा

हाड़ की देही उज्जल रंग,
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना ख़ून किया,
वा का सिर क्यों काट लिया।

– नाख़ून

हर सिर पेड़ सुहावन पात,
क्यों बस साम और रात।
जब नांहि से वा का नांव,
बूझ पहेली छोड़ो गाँव।

– गुल-ए-लाला

हिन्दी में नारी कहें,
फ़ारसी में नर कहलाए।
अगन तो निबेड़े नहीं,
पर अपही से जल जाए।

– नदी

है वो नारी सुन्दर नार,
नार नहीं पर वो है नार।
दूर से सबको छब दिखलावे,
हाथ किसी के क्यूँ न आवे।

– बिजली

नर नारी कहलाती है,
और बिन वर्षा जल जाती है।
पुरुख से आवे पुरुख में जाए,
न दी किसी ने बूझ बताए।

– नदी

नर नारी कहलाता है,
और नर-नारी को आता है।
गर ज़िन्दगी हो मर जाता है,
पर लाग़र सा कर जाता है।

– बुढ़ापा

वह पंछी है जगत में,
जो बसत भवें से दूर।
रेत को उनको बीना देखा,
दिन को देखा सूर।

– चमगादड़

मैं मोठी मोरे पिया अकास,
कैसे जाऊँ पी के पास।
बैरी लोग मुँह दिखावें,
पी चाहें तो आपी आवें।

– कबूतर

नारी में नारी बसे, नारी में नर दोए,
दो नर में नारी बसे, बूझे बिरला कोए।

– नथ

नारंगी रंगरेज़ की और रंगी है करतार,
सगरी दुनिया लेत है झून्टा नांव पुकार।

– नारंगी

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By: Amir Khusro

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