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जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या,
घुँघटा में आग लगा देती,
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी,
पिया प्यार को अपने मना लेती।

इन चुरियों की लाज पिया रखना,
ये तो पहन लई अब उतरत ना,
मोरा भाग सुहाग तुमई से है,
मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी।

मोरे हार सिंगार की रात गई,
पियू संग उमंग की बात गई,
पियू संग उमंग मेरी आस नई।

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By: Amir Khusro

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