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स्वयंसिद्धा – अंजना टंडन की कविता

देर से ही सही
पर जान लिया
अमरबेल की सम्पूर्णता
उसके एकाकीपन में है
ना कि उसके
आलम्बन और अवलम्बन में

किसी की यादों का लरजता दिया
कभी सत्य था ही नहीं
सत्य तो मन के जंगल का
वो प्रतीक्षित सूरज है
जो स्वयं से मिलवा रहा है
नया क्षितिज रच रहा है

रह गई शेष रिक्तता तो
स्त्रियों को मिला वरदान है
कुछ कोख के अंदर
और बहुत सी बाहर

हाँ अब भी प्रेम कर सकती है वह

अधभरे कलश की तृप्ति में
कितने जल का आग्रह है
क्या जान सका है कोई…

स्वयंसिद्धा

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By: Anjana Tandon

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