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बेचारे पुरुष – अपर्णा देवल की कविता

भिन्डी में अजवाइन और रायते में साबुत धनिये का छोंक तो मैं लगा दूँगी,
यह कोशिश भी कर लूँगी कि हर फुल्का पूरा फूले,
प्याज काटना और अचार-पापड़ रखना भी नहीं भूलूँगी,
पास बैठकर जिमाऊँगी तुम्हें…
लेकिन तुम्हें नहीं परोसूँगी अपने अंतस का एक भी विचार,
मुझे तुम्हारी समीक्षाएँ नहीं चाहिए
बेचारे पुरुष!

तुम मुझे स्त्री से व्यक्ति कभी नहीं होने दोगे न!
तो सुनो! मैं भी तुम्हें सिर्फ़ पुरुष ही कहूँगी
मुझे स्त्री रखने को तुम भी व्यक्ति न हो पाओगे
रह जाओगे
बेचारे पुरुष

तुम न नाराज़ मत हुआ करो,
मैं अक्सर बातें भूल जाती हूँ,
अच्छा सुनो! वो तुमने कहा था न,
तुम्हें अच्छा लगेगा,
मेरा अचानक तुमसे आकर कहना
मैं भूल गई हूँ, एक बार फिर से बता दो न,
दिन में कितनी बार और कब-कब,
ख़ाली पेट या खाना खिलाने के बाद और किस तरह कहना है
आई लव यू!

हाँ मैं स्त्री हूँ,
और त्रियाचरित्र भी,
क्या करूँ कि मेरी छोटी से छोटी बात तुम्हें समझ नहीं आती,
मैं कहती हूँ कि मुझे साँस नहीं आ रही,
तुम कहते हो कि मैं पागल हूँ,
सोचना बंद कर दूँ

तुम हँस देते हो मुझ पर,
मेरे पागलपन के क़िस्सों पर,
और तुम्हारे उस अट्टहास के बीच मैं सोचना बंद नहीं कर पाती
और पागल हो उठती हूँ
कर देती हूँ टुकड़े तीन अपनी हर एक बात के
और फिर तीन भाँत की बात करती हूँ मैं
मैं हूँ त्रियाचरित्र
मेरे जीने की और तुम्हारे होने की सूरत है यह!

अब क्या कहूँ मैं तुम्हारे पौरुष को,
कि बहुत कुछ अनछुआ है अब भी मेरे भीतर

जो कही होती गीता किसी स्त्री ने कभी
तो कहती आत्माएँ सब मर जाती हैं,
बस देह अमर रहती हैं!

बस एक वहीं आकर तो तुम सब कुछ हार जाते हो,
बस वहीं आकर तो मैं सब कुछ जीत जाती हूँ,
मैं सब देकर भी रीतती नहीं
तुम सब पाकर भी धापते नहीं
पता है क्यों… बेचारे पुरुष!
क्योंकि मैं स्त्री हूँ, और मैं केवल देह नहीं हूँ!

लड़की हँसती है

लड़की हँसती है हर बार,
जब कोई कहता है-
तुम बहुत भोली हो और दुनिया बहुत ख़राब
लड़की हँसती है क्योंकि जानती है वो
कि न तो दुनिया इतनी बुरी है,
न ही वो बहुत भोली,
लड़की अब राजनीति समझती है!

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By: Aparna Dewal

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