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पत्थर बहुत सारे थे

पटरी औरत लगी मुझे
जिसकी छाती पर चल रही हो दुनिया
और
जिसके दोनों ओर
रखे गए हों पत्थर
ताकि वह बनी रहे वैसी जैसा उसे बनाया गया हो।
पत्थरों के लिए नहीं मिली कोई उपमा
पत्थर बहुत सारे थे।

पटरी जानती है यह बात
कि सब गुज़र जाता है
जीवन ठहरने के लिए बना ही नहीं
पटरी होती है उदास
उदासी के गुज़र जाने तक।

एक बार यह समझ लेने के बाद
कि सब गुज़र ही जाना है एक दिन
जीवन कितनी ही बार पटरी पर लौटे
लौटे या न भी लौटे
क्या फ़र्क़ पड़ता है।

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By: Aparna Dewal

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