शेर

आशुफ़्ता चंगेज़ी के चुनिंदा शेर

Published by
Ashufta Changezi

सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे
बिछड़ के तुझ से अजब रोग लग गया है मुझे


तेरी ख़बर मिल जाती थी
शहर में जब अख़बार न थे


तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
रास्तों के जाल में उलझा हूँ मैं


पहले ही क्या कम तमाशे थे यहाँ
फिर नए मंज़र उठा लाया हूँ मैं


कहा था तुम से कि ये रास्ता भी ठीक नहीं
कभी तो क़ाफ़िले वालों की बात रख लेते


बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
अभी कुछ दिन ये सौग़ातें रहेंगी


सड़क पे चलते हुए आँखें बंद रखता हूँ
तिरे जमाल का ऐसा मज़ा पड़ा है मुझे


जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता था
ज़रूर कोई न कोई तो वास्ता होगा


सोने से जागने का तअल्लुक़ न था कोई
सड़कों पे अपने ख़्वाब लिए भागते रहे


हमें ख़बर थी ज़बाँ खोलते ही क्या होगा
कहाँ कहाँ मगर आँखों पे हाथ रख लेते


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Ashufta Changezi