कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा’द ये मौसम बहुत सताएगा
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
किराए के घर थे बदलते रहे
मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे
लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे
जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यूँ मेरे लिए बदनाम हो जाए
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बअ’द मिरी आँखों में आँसू आए