शेर

बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

Published by
Bashir Badr

यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते


कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते


चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी


कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की


मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए


अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते


किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे


वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो


वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का
रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू


ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे


958

Page: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17

Published by
Bashir Badr