मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
रात दिन तू रहे रक़ीबाँ-संग
देखना तेरा मुझ मुहाल हुआ
तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
मेरे दिल में शौक़ है दीदार का
गुड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का
इस जलेबी में क़ंद ओ शक्कर है
वो तमाशा ओ खेल होली का
सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद
तेरे मिलाप बिन नहीं ‘फ़ाएज़’ के दिल को चैन
ज्यूँ रूह हो बसा है तू उस के बदन में आ
हुस्न बे-साख़्ता भाता है मुझे
सुर्मा अँखियाँ में लगाया न करो
तुझ बदन पर जो लाल सारी है
अक़्ल उस ने मिरी बिसारी है
जब सजीले ख़िराम करते हैं
हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं
मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज
कहने लगी कि हम सूँ न कर बात तू बुरी