बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं