loader image

फ़िराक़ गोरखपुरी के चुनिंदा शेर

तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
मोहब्बत में ये मा’सूमी बड़ी मुश्किल से आती है


इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात


ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा
और अगर रोइए तो पानी है


ज़िंदगी में जो इक कमी सी है
ये ज़रा सी कमी बहुत है मियाँ


अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को
तो जान लो कि यहाँ आदमी की ख़ैर नहीं


आज आग़ोश में था और कोई
देर तक हम तुझे न भूल सके


मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती
दुनिया के मसाइब का सबब और ही कुछ है


बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर
अब आ गए हो तो आओ तुम्हें ख़राब करें


रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ मानूस-ए-जहाँ होने लगा
ख़ुद को तेरे हिज्र में तन्हा समझ बैठे थे हम


जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ


985

Add Comment

By: Firaq Gorakhpuri

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!