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फ़िराक़ गोरखपुरी के चुनिंदा शेर

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी


रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी


इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात


देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब ‘फ़िराक़’
कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़


लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी


मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर


साँस लेती है वो ज़मीन ‘फ़िराक़’
जिस पे वो नाज़ से गुज़रते हैं


खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है


तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं


कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें


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By: Firaq Gorakhpuri

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