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फ़िराक़ गोरखपुरी के चुनिंदा शेर

कह दिया तू ने जो मा’सूम तो हम हैं मा’सूम
कह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम


कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
आसमानों को नींद आती है


सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर इसी सिलसिले के हैं


आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है


शामें किसी को माँगती हैं आज भी ‘फ़िराक़’
गो ज़िंदगी में यूँ मुझे कोई कमी नहीं


शक्ल इंसान की हो चाल भी इंसान की हो
यूँ भी आती है क़यामत मुझे मा’लूम न था


असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ


तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
मुद्दतों के बा’द देखा था तो आँसू आ गए


सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं


अक़्ल में यूँ तो नहीं कोई कमी
इक ज़रा दीवानगी दरकार है


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By: Firaq Gorakhpuri

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