जो कहिए उस के हक़ में कम है बे-शक
परी है हूर है रूह-उल-अमीं है
मैं गिरफ़्तार हूँ तिरे मुख पर
जग में नई और कुछ पसंद मुझे
अब्र का साया ओ सब्ज़ा राह का
जान-ए-मन रथ की सवारी याद है
वही क़द्र ‘फ़ाएज़’ की जाने बहुत
जिसे इश्क़ का ज़ख़्म कारी लगे
उश्शाक़ जाँ-ब-कफ़ खड़े हैं तेरे आस-पास
ऐ दिल-रुबा-ए-ग़ारत-ए-जाँ अपने फ़न में आ
करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को ‘फ़ाएज़’
मिरा साजन बहार-ए-अंजुमन है
ख़ूब-रू आश्ना हैं ‘फ़ाएज़’ के
मिल सभी राम राम करते हैं
पानी होवे आरसी उस मुख को देख
ज़ोहरा उसे क्या कि इक़ामत करे
ख़ाक सेती सजन उठा के किया
इश्क़ तेरे ने सर-बुलंद मुझे
मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
ख़ंदाँ हो कर के गुल की सिफ़त टुक सुख़न में आ