निगाहें करती रह जाती हैं हिज्जे
वो जब चेहरे से इमला बोलता है
टहलते फिर रहे हैं सारे घर में
तिरी ख़ाली जगह को भर रहे हैं
शहसवारों ने रौशनी माँगी
मैं ने बैसाखियाँ जला डाली
फ़हमी बदायूनी के शेर
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निगाहें करती रह जाती हैं हिज्जे
वो जब चेहरे से इमला बोलता है
टहलते फिर रहे हैं सारे घर में
तिरी ख़ाली जगह को भर रहे हैं
शहसवारों ने रौशनी माँगी
मैं ने बैसाखियाँ जला डाली
फ़हमी बदायूनी के शेर
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