शेर

गुलज़ार के चुनिंदा शेर

Published by
Sampooran Singh Kalra (Gulzar)

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले


आँखों के पोछने से लगा आग का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ


ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है


यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी


अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है


ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी
उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी


ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
वगर्ना ज़िंदगी भर को रुला दिया होता


चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें


गो बरसती नहीं सदा आँखें
अब्र तो बारा मास होता है


एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का


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Sampooran Singh Kalra (Gulzar)