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हफ़ीज़ बनारसी के चुनिंदा शेर

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं


गुमशुदगी ही अस्ल में यारो राह-नुमाई करती है
राह दिखाने वाले पहले बरसों राह भटकते हैं


एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है
ज़िंदगी कहते हैं जिस को राम का बन-बास है


चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी है
जो थक कर बैठ जाते हैं वो मंज़िल पा नहीं सकते


सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या


कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया
तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया


किस मुँह से करें उन के तग़ाफ़ुल की शिकायत
ख़ुद हम को मोहब्बत का सबक़ याद नहीं है


तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है


जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़यामत वही तो उठाए हुए हैं


वफ़ा नज़र नहीं आती कहीं ज़माने में
वफ़ा का ज़िक्र किताबों में देख लेते हैं


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By: Hafeez Banarasi

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