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मोहब्बत करने वाले कम न होंगे

मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे

मैं अक्सर सोचता हूँ फूल कब तक
शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम न होंगे

ज़रा देर-आश्ना चश्म-ए-करम है
सितम ही इश्क़ में पैहम न होंगे

दिलों की उलझनें बढ़ती रहेंगी
अगर कुछ मशवरे बाहम न होंगे

ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे

कहूँ बेदर्द क्यूँ अहल-ए-जहाँ को
वो मेरे हाल से महरम न होंगे

हमारे दिल में सैल-ए-गिर्या होगा
अगर बा-दीदा-ए-पुर-नम न होंगे

अगर तू इत्तिफ़ाक़न मिल भी जाए
तिरी फ़ुर्क़त के सदमे कम न होंगे

‘हफ़ीज़’ उन से मैं जितना बद-गुमाँ हूँ
वो मुझ से उस क़दर बरहम न होंगे

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By: Hafeez Hoshiarpuri

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