शेर

जोश मलीहाबादी के चुनिंदा शेर

Published by
Josh Malihabadi

हम गए थे उस से करने शिकवा-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
मुस्कुरा कर उस ने देखा सब गिला जाता रहा


हाँ आसमान अपनी बुलंदी से होशियार
अब सर उठा रहे हैं किसी आस्ताँ से हम


गुज़र रहा है इधर से तो मुस्कुराता जा
चराग़-ए-मज्लिस-ए-रुहानियाँ जलाता जा


अब तक न ख़बर थी मुझे उजड़े हुए घर की
वो आए तो घर बे-सर-ओ-सामाँ नज़र आया


सिर्फ़ इतने के लिए आँखें हमें बख़्शी गईं
देखिए दुनिया के मंज़र और ब-इबरत देखिए


हर एक काँटे पे सुर्ख़ किरनें हर इक कली में चराग़ रौशन
ख़याल में मुस्कुराने वाले तिरा तबस्सुम कहाँ नहीं है


मिला जो मौक़ा तो रोक दूँगा ‘जलाल’ रोज़-ए-हिसाब तेरा
पढूँगा रहमत का वो क़सीदा कि हँस पड़ेगा अज़ाब तेरा


सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया


बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद
कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया


इधर तेरी मशिय्यत है उधर हिकमत रसूलों की
इलाही आदमी के बाब में क्या हुक्म होता है


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