जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने
क्या सितम है कि अब तिरी सूरत
ग़ौर करने पे याद आती है
मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से