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जौन एलिया के चुनिंदा शेर

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम


आख़िरी बात तुम से कहना है
याद रखना न तुम कहा मेरा


हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं


अब तुम कभी न आओगे यानी कभी कभी
रुख़्सत करो मुझे कोई वादा किए बग़ैर


सब मेरे बग़ैर मुतमइन हैं
मैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ


आईनों को ज़ंग लगा
अब मैं कैसा लगता हूँ


चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी


क्या पूछते हो नाम-ओ-निशान-ए-मुसाफ़िराँ
हिन्दोस्ताँ में आए हैं हिन्दोस्तान के थे


ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं
शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं


कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मिरी जान तेरे बस का नहीं


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By: Jaun Elia

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