क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं
ऐ शख़्स मैं तेरी जुस्तुजू से
बे-ज़ार नहीं हूँ थक गया हूँ
वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
आज मुझ को बहुत बुरा कह कर
आप ने नाम तो लिया मेरा
कोई मुझ तक पहुँच नहीं पाता
इतना आसान है पता मेरा
जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते
अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर
कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते
शब जो हम से हुआ मुआफ़ करो
नहीं पी थी बहक गए होंगे
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने