ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का
मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है
अब मिरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते
अब कोई शिकवा हम नहीं करते
याद उसे इंतिहाई करते हैं
सो हम उस की बुराई करते हैं
अब नहीं कोई बात ख़तरे की
अब सभी को सभी से ख़तरा है
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो
कुछ नहीं आसमान में रक्खा