loader image

जौन एलिया के चुनिंदा शेर

मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या


उस ने गोया मुझी को याद रखा
मैं भी गोया उसी को भूल गया


गो अपने हज़ार नाम रख लूँ
पर अपने सिवा मैं और क्या हूँ


हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीब
पिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक


फुलाँ से थी ग़ज़ल बेहतर फुलाँ की
फुलाँ के ज़ख़्म अच्छे थे फुलाँ से


जम्अ’ हम ने किया है ग़म दिल में
इस का अब सूद खाए जाएँगे


जान-ए-मन तेरी बे-नक़ाबी ने
आज कितने नक़ाब बेचे हैं


इक अजब आमद-ओ-शुद है कि न माज़ी है न हाल
‘जौन’ बरपा कई नस्लों का सफ़र है मुझ में


हम हैं मसरूफ़-ए-इंतिज़ाम मगर
जाने क्या इंतिज़ाम कर रहे हैं


ख़ुदा से ले लिया जन्नत का व’अदे
ये ज़ाहिद तो बड़े ही घाग निकले


985

Add Comment

By: Jaun Elia

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!