मुझे अब होश आता जा रहा है
ख़ुदा तेरी ख़ुदाई जा रही है
हम जो अब आदमी हैं पहले कभी
जाम होंगे छलक गए होंगे
तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह
आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं
मिल कर तपाक से न हमें कीजिए उदास
ख़ातिर न कीजिए कभी हम भी यहाँ के थे
अपने अंदर हँसता हूँ मैं और बहुत शरमाता हूँ
ख़ून भी थूका सच-मुच थूका और ये सब चालाकी थी
भूल जाना नहीं गुनाह उसे
याद करना उसे सवाब नहीं
उस से हर-दम मोआ’मला है मगर
दरमियाँ कोई सिलसिला ही नहीं
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
तिरी क़ीमत घटाई जा रही है
मुझे फ़ुर्क़त सिखाई जा रही है
सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था