किस लिए देखती हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो
सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं
उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं
क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!
आख़िरी बार मिल रही हो क्या
मुझे अब तुम से डर लगने लगा है
तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या
और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं
हम को यारों ने याद भी न रखा
‘जौन’ यारों के यार थे हम तो
कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है