हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी
और उन की तरफ़ ख़ुदाई है
कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दो
जब आग भेज दी है तो पानी भी भेज दो
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है
एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है
काम है मेरा तग़य्युर नाम है मेरा शबाब
मेरा ना’रा इंक़िलाब ओ इंक़िलाब ओ इंक़िलाब
आप से हम को रंज ही कैसा
मुस्कुरा दीजिए सफ़ाई से
मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया
उस ने वा’दा किया है आने का
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का
इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है