वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह
जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की
किसी का अहद-ए-जवानी में पारसा होना
क़सम ख़ुदा की ये तौहीन है जवानी की
आड़े आया न कोई मुश्किल में
मशवरे दे के हट गए अहबाब
इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम है
अंगूर की शराब का पीना हराम है
सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने ए’तिबार किया
इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
तबस्सुम की सज़ा कितनी कड़ी है
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है
कोई आया तिरी झलक देखी
कोई बोला सुनी तिरी आवाज़
हम ऐसे अहल-ए-नज़र को सुबूत-ए-हक़ के लिए
अगर रसूल न होते तो सुब्ह काफ़ी थी