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एक पारिवारिक प्रश्न – केदारनाथ सिंह की कविता

छोटे से आंगन में
माँ ने लगाए हैं
तुलसी के बिरवे दो

पिता ने उगाया है
बरगद छतनार

मैं अपना नन्हा गुलाब
कहाँ रोप दूँ!

मुट्ठी में प्रश्न लिए
दौड़ रहा हूं वन-वन,
पर्वत-पर्वत,
रेती-रेती…
बेकार

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By: Kedarnath Singh

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