रात पिया, पिछवारे
पहरू ठनका किया।
कँप-कँप कर जला दिया
बुझ-बुझ कर यह जिया
मेरा अंग-अंग जैसे
पछुए ने छू दिया
बड़ी रात गए कहीं
पण्डुक पिहका किया।
आँखड़ियाँ पगली की
नींद हुई चोर की
पलकों तक आ-आकर
बाढ़ रुकी लोर की
रह-रहकर खिड़की का
पल्ला उढ़का किया।
पथराए तारों की जोत
डबडबा गई
मन की अनकही सभी
आँखों में छा गई
सुना क्या न तुमने,
यह दिल जो धड़का किया।