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अल्लामा इक़बाल के चुनिंदा शेर

तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर


अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा


ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
जू-ए-शीर ओ तेशा ओ संग-ए-गिराँ है ज़िंदगी


निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है
शिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं


मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब
ख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़


पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
जहाँ वो चाहिए मुझ को कि हो अभी नौ-ख़ेज़


अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील


किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
फ़क़ीह ओ सूफ़ी ओ शाइर की ना-ख़ुश-अंदेशी


मीर-ए-अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है


हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
किसे ख़बर कि तजल्ली है ऐन-ए-मस्तूरी


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By: Allama Muhammad Iqbal

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