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वीणावादिनी – निराला की कविता

तव भक्त भ्रमरों को हृदय में लिए वह शतदल विमल
आनन्द-पुलकित लोटता नव चूम कोमल चरणतल।

बह रही है सरस तान-तरंगिनी,
बज रही है वीणा तुम्हारी संगिनी,
अयि मधुरवादिनि, सदा तुम रागिनी-अनुरागिनी,
भर अमृत-धारा आज कर दो प्रेम-विह्वल हृदयदल,
आनन्द-पुलकित हों सकल तव चूम कोमल चरणतल!

स्वर हिलोरं ले रहा आकाश में,
काँपती है वायु स्वर-उच्छ्वास में,
ताल-मात्राएँ दिखातीं भंग, नव रति रंग भी
मूर्च्छित हुए से मूर्च्छना करती उठाकर प्रेम-छल,
आनन्द-पुलकित हों सकल तव चूम कोमल चरणतल!

वीणावादिनी

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By: Suryakant Tripathi (Nirala)

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