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लब पर दिल की बात न आई

लब पर दिल की बात न आई
वापस बीती रात न आई

ख़ुश्क हुईं रो रो कर आँखें
मध-माती बरसात न आई

मेरी शब की तारीकी में
तारों की सौग़ात न आई

मय-ख़ाने की मस्त फ़ज़ा में
रास मुझे हैहात न आई

दिल तो उमडा रो ना सका मैं
छाई घटा बरसात न आई

मेरा चाँद निकलने को था
शाम से पहले रात न आई

जिस पर महफ़िल लुट जाती है
तुझ को ‘ज़िया’ वो बात न आई

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By: Zia Fatehbadi

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