शेर

ओबैदुर रहमान के चुनिंदा शेर

Published by
Obaidur Rahman

नज़र में दूर तलक रहगुज़र ज़रूरी है
किसी भी सम्त हो लेकिन सफ़र ज़रूरी है


अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठा
दर्द एहसास का सीने में दबाने से उठा


यही इक सानेहा कुछ कम नहीं है
हमारा ग़म तुम्हारा ग़म नहीं है


तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं


जब धूप सर पे थी तो अकेला था में ‘उबैद’
अब छाँव आ गई है तो सब यार आए हैं


कोई दिमाग़ से कोई शरीर से हारा
मैं अपने हाथ की अंधी लकीर से हारा


शोख़ी किसी में है न शरारत है अब ‘उबैद’
बच्चे हमारे दौर के संजीदा हो गए


सोहबत में जाहिलों की गुज़ारे थे चंद रोज़
फिर ये हुआ मैं वाक़िफ़-ए-आदाब हो गया


आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
किस किस घर का ज़िक्र करूँ में किस किस के सदमात लिखूँ


हमें हिजरत समझ में इतनी आई
परिंदा आब-ओ-दाना चाहता है


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Obaidur Rahman