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कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए

कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए
क्या ज़रूरी है तिरी याद आए

तेरी आँखों के बुलावे की किरन
क्यूँ मिरी राहगुज़र बन जाए

ज़िंदगी दश्त-ए-सफ़र धूप ही धूप
तेरे बिन कैसे कहाँ के साए

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By: Yaqoob Rahi

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