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अम्बर बहराईची के चुनिंदा शेर

हर फूल पे उस शख़्स को पत्थर थे चलाने
अश्कों से हर इक बर्ग को भरना था हमें भी


हम पी भी गए और सलामत भी हैं ‘अम्बर’
पानी की हर इक बूँद में हीरे की कनी थी


एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़
आसमाँ-दर-आसमाँ-दर-आसमाँ क्यूँ रत-जगे हैं


एक साहिर कभी गुज़रा था इधर से ‘अम्बर’
जा-ए-हैरत कि सभी उस के असर में हैं अभी


सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो
सेहन को महका रही थी सुन्नतें पढ़ते हुए


गए थे हम भी बहर की तहों में झूमते हुए
हर एक सीप के लबों में सिर्फ़ रेगज़ार था


रोज़ हम जलती हुई रेत पे चलते ही न थे
हम ने साए में खजूरों के भी आराम किया


उस ने हर ज़र्रे को तिलिस्म-आबाद किया
हाथ हमारे लगी फ़क़त हैरानी है


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By: Ambar Bahraichi

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