ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी
बुरे होते हो अच्छे हो के ये क्या बद-ज़बानी है
शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर ‘अमीर’
सौ बोतलों का नश्शा है इस वाह वाह में
बाक़ी न दिल में कोई भी या रब हवस रहे
चौदह बरस के सिन में वो लाखों बरस रहे
मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा
यही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
आया न एक बार अयादत को तू मसीह
सौ बार मैं फ़रेब से बीमार हो चुका
आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटाया न जाएगा
फूँकों से ये चराग़ बुझाया न जाएगा
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैं ने दुनिया छोड़ दी जिन के लिए
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का
धुआँ लगता है आँखों में किसी के दिल के जलने का
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता