है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का
लहू की क़ैद से बाहर कोई बुलाता है
एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा
सर्द रातों में कुछ और दिखता नहीं
घर की हद में सहरा है
आगे दरिया बहता है
घर के अंदर जाने के
और कई दरवाज़े हैं
दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ
दीवार बना है अभी दीवाना नहीं है