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आशुफ़्ता चंगेज़ी के चुनिंदा शेर

आँख खुलते ही बस्तियाँ ताराज
कोई लज़्ज़त नहीं है ख़्वाबों में


अजीब ख़्वाब था ताबीर क्या हुई उस की
कि एक दरिया हवाओं के रुख़ पे बहता था


तलाश जिन को हमेशा बुज़ुर्ग करते रहे
न जाने कौन सी दुनिया में वो ख़ज़ाने थे


घर में और बहुत कुछ था
सिर्फ़ दर-ओ-दीवार न थे


‘आशुफ़्ता’ अब उस शख़्स से क्या ख़ाक निबाहें
जो बात समझता ही नहीं दिल की ज़बाँ की


दरियाओं की नज़्र हुए
धीरे धीरे सब तैराक


ये और बात कि तुम भी यहाँ के शहरी हो
जो मैं ने तुम को सुनाया था मेरा क़िस्सा है


तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
कुछ और साथ में परछाइयाँ लगा लाए


क्यूँ खिलौने टूटने पर आब-दीदा हो गए
अब तुम्हें हम क्या बताएँ क्या परेशानी हुई


तेज़ी से बीतते हुए लम्हों के साथ साथ
जीने का इक अज़ाब लिए भागते रहे


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By: Ashufta Changezi

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