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मॉर्निंग वॉक – बद्रीनारायण की कविता

आज दिव्य हुआ मॉर्निंग वॉक
एक तरफ़ से अजीम प्रेम जी आ रहे थे
दूसरी ओर से इन्फ़ोसिस के मूर्ति नारायण
और तीसरी तरफ़ से मैं
तीनों मिले शेषाद्रियैय्या पार्क में

मैं अपने स्वास्थ्य के लिए चिंतित था
वे दोनों अध्यात्म, इन्वेस्टमेंट
और देश के लिए चिन्तित थे

काफ़ी ग़रीबी इस देश की कम कर दी है हमने
इसे सिलिकॉन में तब्दील करना ही है
वॉक करते-करते हाथ ऊपर-नीचे करते
अजीम प्रेम जी ने फ़रमाया

पार्क के किनारे बैठे कई भिखारी, कुछ मवाली
ऐसे मुस्कुरा रहे थे, जैसे वे हमें मुँह चिढ़ा रहे हों
उसी वक़्त सिलिकॉन वैलि के इस पार्क की सड़क
पर बिलबिलाते अनेक कुत्ते हाँव-हाँव करने लगे

न जाने क्या कुछ घटित हुआ
मैं कुछ समझ न पाया
नारायण मूर्त्ति ज़ोर से चिल्लाए ‘हरिओम’ ऽऽ
और हॉऽऽ- हॉऽऽ कर ज़ोर से हँसने लगे
शायद यह भी एक शारीरिक अभ्यास था

चिन्तित थे नारायण मूर्त्ति
कैसे इस देश में और ज़्यादा
इन्वेस्टमेंट बढ़ाया जाए
सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्री में कोई श्रमिक तो होता नहीं
भले ही किसी को चार हज़ार माहवार मिले
किसी को चार लाख
सोचना यह है कि इनके लिए कैसे ज़्यादा पब्लिक
फ़ैसिलिटी प्रोवाइड की जाए
लेनिन तो कर नहीं पाए
हमने क्लिंटन और ओबामा के साथ मिलकर
बराबरी और समाजवाद लाने की
दिशा में काफ़ी तरक़्क़ी की है ।

तभी दिख गए श्री-श्री रविशंकर
सफ़ेद कपड़ों में बुद्ध की तरह मुस्काते

अजीम प्रेम जी ने उनसे हाथ मिलाया
श्री-श्री आर्ट अऑफ़ लिविंग
के सारे नियम तोड़ उनके
कान में कुछ फुसफुसाए

मैं उन फुसफुसाहटों का मतलब ढूँढ़ ही रहा था
तभी राम गुहा दिख गए पार्क में
कबूतरों को दाना खिलाते
राम ने मुझसे हलके से कहा
सॉफ़्टवेयर के इन श्रमिकों के लिए
नया नाम ढूँढ़ना होगा

हम और राम बात कर ही रहे थे
कि एक पेड़ के नीचे देवगौड़ा बेल्लारी के किसानों को प्रतीक में बदल
अपने पॉकेट पर लगाए
बालों का झड़ना रोकने के लिए
बबा रामदेव के पतंजलि योग नियम के अनुसार
अपने नाखूनों को रगड़ते जा रहे थे
और उछलते जा रहे थे

आज दिव्य हुआ मॉर्निंग वॉक
जैसे एक तरफ़ इन्द्र चल रहे हों
दूसरी तरफ़ कुबेर
और हम साथ-साथ
मॉर्निंग वॉक कर रहे हों ।

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By: Badrinarayan

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