मर गए हम पर न आए तुम ख़बर को ऐ सनम
हौसला अब दिल का दिल ही में मिरी जाँ रह गया
मसल सच है बशर की क़दर नेमत ब’अद होती है
सुना है आज तक हम को बहुत वो याद करते हैं
किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को
दिल-ए-मुज़्तर तड़पता है निहायत बे-क़रारी है
बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर
एक साअत में तह-ओ-बाला ज़माना हो गया
क़ब्र में राहत से सोए थे न था महशर का ख़ौफ़
बाज़ आए ऐ मसीहा हम तिरे एजाज़ से
छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें
मिट्टी मिरी ख़राब अबस दर-ब-दर हुई
हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में
मिस्ल-ए-मजनूँ हाल मेरा भी फ़साना हो गया
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
ये दाग़ कलेजे पे उठाना नहीं अच्छा
ये कह दो बस मौत से हो रुख़्सत क्यूँ नाहक़ आई है उस की शामत
कि दर तलक वो मसीह-ख़सलत मिरी अयादत को आ चुके हैं
ऐ ‘रसा’ जैसा है बरगश्ता ज़माना हम से
ऐसा बरगश्ता किसी का न मुक़द्दर होगा