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भारतेन्दु हरिश्चंद्र के चुनिंदा शेर

आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा


ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के
रहा जहाँ में सिकंदर न और न जम बाक़ी


न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे
अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिजकते हैं


गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में


रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं


किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे
तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं


अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की
उठो न पहलू से ठहरो ज़रा किधर को चले


जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
उसी का सब है जल्वा जो जहाँ में आश्कारा है


बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा हो
नहीं कुछ ख़ौफ़ मेरा भी ख़ुदा है


ग़ाफ़िल इतना हुस्न पे ग़र्रा ध्यान किधर है तौबा कर
आख़िर इक दिन सूरत ये सब मिट्टी में मिल जाएगी


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By: Bhartendu Harishchandra

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